Minakhi Misra

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  • आगे बढ़ो

    क्यों बिख़र गया उसकी सांस निकलते ही
    बुझ जाना तो तय है चराग़ के जलते ही

    सितारों से पूछ ले उसका नया पता
    वो लोग मिलते हैं शहर से दूर चलते ही

    आदत डाल ले घड़ी उल्टी पहनने की
    उसका दिन जगता है तेरा दिन ढलते ही

    पर इस मायूसी में ख़ुदको तबाह मत कर
    तेरे दिन बदलेंगे तेरे बदलते ही

    भूल जा उस ख़ाब को जो फ़िर दिखेगा नहीं
    मिट गया वो ‘मिसरा’ तेरे आंख मलते ही

    April 30, 2021
    Hindi, Poems
  • शायर

    रोज़ कागज़ के हाथों फटना पड़ता है
    शायर हूँ शायरी से कटना पड़ता है

    शायरी वो जंग है जिसमें हर शायर को
    आप ही मुक़ाबिल अपने डटना पड़ता है

    इतना ज़िद्दी हूँ कि कभी गर अड़ जाऊं
    गऊ तक को रास्ते से हटना पड़ता है

    इक कौम का गुस्सा बुझाने दूसरे कौम पे
    क्यों इक नए हादसे को घटना पड़ता है

    हिंदी उर्दू तो दोनों के ज़ुबां पे हैं
    इन्हें क्यों मजहबों में बटना पड़ता है

    कायरों ने ऐसी आग लगाई है ‘मिसरा’
    शायरों को ये धुंआ छटना पड़ता है

    April 29, 2021
    Hindi, Poems
  • जमती नहीं

    ज़माने से दूर हुआ कि किसी से जमती नहीं
    तन्हाई में जाना कि मेरी मुझ ही से जमती नहीं

    अपने को आप ही में एक जज़ीरा बना दिया मगर
    अब इन लहरों की नटखट दिल्लगी से जमती नहीं

    आदत थी किताबों की गहराईयों में डूबने की
    अब उनसे बनी टीले की ऊंचाई से जमती नहीं

    अच्छा हुआ पुराने कागज़ ग़ुम हो गए ‘मिसरा’
    हिंदी पे दिल आ गया है अंग्रेज़ी से जमती नहीं

    April 28, 2021
    Hindi, Poems
  • क़िस्मत

    किस्मतवालों में भी बदकिस्मत उसे कहा जाता है
    जिसने पान डाला होता है कोई चाय ले आता है

    काले संगेमरमर वालों की परेशानियां और हैं
    घर आया रिश्तेदार उनपे काली नज़र लगाता है

    किसीको हैरत नहीं कि चंदू की चाची भाग गयीं
    चंदू का चाचा तो बस चांदनी रात में पास आता है

    भगवान की मूरत बिठाने वाले को ये वहम है कि
    वो बड़ा भक्त है उससे जो बस इक तस्वीर लगाता है

    और भी दिन आएंगे ऐसे जब लिखना यूं मुश्किल होगा
    शायर वही होता है जो तब भी मिसरा लिख पाता है

    April 27, 2021
    Hindi, Poems
  • नहीं देखा

    किसीने अपना मुक़द्दर नहीं देखा
    मछली ने कभी समंदर नहीं देखा

    ज़ेवर-ए-तरन्नुम उस गले में मिला
    जिस गले ने कभी ज़ेवर नहीं देखा

    झूठ कहती है अगर कहती है उसने
    एक बार भी मुझे पलट कर नहीं देखा

    मेरी तरक़्क़ी में यूँ खुश थे घरवाले
    किसीने मेरा झुका सर नहीं देखा

    दोस्तों ने मेरी किताब खरीद तो ली पर
    खोलके किसीने भी अंदर नहीं देखा

    उनसे वाहवाही की उम्मीद क्यों ‘मिसरा’
    जिन्होंने इक ढंग का शायर नहीं देखा

    April 26, 2021
    Hindi, Poems
  • तोहफ़े

    छत पे बेटे ने क्या नाटक लगाया है
    चुल्लू भर पानी में चंदा डुबाया है

    कहता है रोज़ चाँद तोहफ़े में देता है
    किसीको दिया एक वादा निभाया है

    शायद कॉलेज में कोई पसंद है इसे
    टीचर ने भी अटेंडेंस फुल ही बताया है

    कुछ दिन से घर के सारे काम कर रहा है
    कुछ बड़ा मांगने का प्लान बनाया है

    उसकी मीठी बातों में न फस जाना तुम
    कोयल भी कहता है घोसला बसाया है

    आ गए बेटे हाथ में नया शेर है क्या
    पुराने हैं पापा पहले सुनाया है

    रहने दो जनाब आंखों में साफ दिखता है
    कोई है जिसने रात का चैन चुराया है

    ये किताब तुम रोज़ खोलने लगे हो ‘मिसरा’
    बोलो किसका दिया गुलाब छुपाया है

    April 25, 2021
    Hindi, Poems
  • क्या ले आऊं

    तेरी शादी में बोल क्या ले आऊं
    दुआ नहीं है दवा ले आऊं

    बंद रखता है खिड़की शोहर तेरा
    बोतल में भरके फ़िज़ा ले आऊं

    पक्का आंगन महकने से रहा
    पहली बारिश का मज़ा ले आऊं

    छुप कर अब तू पी नहीं सकेगी
    इत्र में घोल के नशा ले आऊं

    पकाना तो तुझे पसंद नहीं
    मैं दो डब्बे हर सुबा’ ले आऊं

    आवाज़ दे “मिसरा” गर खुश नहीं है
    वहां से तुझे भगा ले आऊं

    April 24, 2021
    Hindi, Poems
  • नहीं जलता

    किताब जल जाए फ़लसफ़ा नहीं जलता
    निखरता है आग में सोना नहीं जलता

    मोहल्ले से सबको निकाल कर कहते हैं
    अब मज़हब के नाम मोहल्ला नहीं जलता

    सियासत वालों कभी अमर ज्योत देखो
    इंसां जलते है इरादा नहीं जलता

    जलते होंगे अमीरों से दूसरे अमीर
    हीरों के ताज से ये कासा नहीं जलता

    बड़ी आग लगाती है शायरी ‘मिसरा’
    बस कम्बख़त घर का चूल्हा नहीं जलता

    April 23, 2021
    Hindi, Poems
  • अधजला प्लास्टर

    शाम को जब वो मुस्कुराके बुलाती थी
    नींद भी माँ की लोरी सुनने आती थी

    बस उतने पैसे थे कि किताबें ले लूं
    माँ टीचर थी दुआओं में कमाती थी

    इस्त्री के कोयले जब महँगे हो गये थे
    बिस्तर के नीचे माँ कपड़े दबाती थी

    मोगरे का पौधा जो पापा लगा गुज़रे
    उसी के फूल के माँ गजरे लगाती थी

    पान थूंकते न जाने कब खूँ थूंकने लगे
    पापा को फूल नहीं माँ पान चढ़ाती थी

    मुझे आलू के सिवा कुछ न पसंद था
    पर टिफ़िन में माँ सब्ज़ी ही सजाती थी

    क्या अधजले प्लास्टर को भूल गया ‘मिसरा’
    टूटे हाथ से भी जब माँ खाना पकाती थी

    April 22, 2021
    Hindi, Poems
  • फ़ुज़ूल

    उन जैसे लोगों से लड़ाई फ़ुज़ूल है
    जो कहते हैं चाय पे मलाई फ़ुज़ूल है

    नए नए कर्ज़ों में फसना ही है जब
    पुराने कर्ज़ों से रिहाई फ़ुज़ूल है

    अदालत के फ़ैसले से डर ही नहीं तो
    अदालत में नई सुनवाई फ़ुज़ूल है

    जो बेटी के होने पे रोते हैं उनपे
    बेटे के होने की बधाई फ़ुज़ूल है

    लिंग की लंबाई से नापते हैं यहां तो
    समझदारी की इकाई फ़ुज़ूल है

    दो वक़्त का सुकून भी नसीब नहीं जब
    ये राजाओं जैसी कमाई फ़ुज़ूल है

    नौकरी से खुद इस्तीफ़ा दे आ ‘मिसरा’
    इस जंगल में तेरी परसाई फ़ुज़ूल है

    April 21, 2021
    Hindi, Poems
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