क्यों बिख़र गया उसकी सांस निकलते ही
बुझ जाना तो तय है चराग़ के जलते ही
सितारों से पूछ ले उसका नया पता
वो लोग मिलते हैं शहर से दूर चलते ही
आदत डाल ले घड़ी उल्टी पहनने की
उसका दिन जगता है तेरा दिन ढलते ही
पर इस मायूसी में ख़ुदको तबाह मत कर
तेरे दिन बदलेंगे तेरे बदलते ही
भूल जा उस ख़ाब को जो फ़िर दिखेगा नहीं
मिट गया वो ‘मिसरा’ तेरे आंख मलते ही