किसीने अपना मुक़द्दर नहीं देखा
मछली ने कभी समंदर नहीं देखा
ज़ेवर-ए-तरन्नुम उस गले में मिला
जिस गले ने कभी ज़ेवर नहीं देखा
झूठ कहती है अगर कहती है उसने
एक बार भी मुझे पलट कर नहीं देखा
मेरी तरक़्क़ी में यूँ खुश थे घरवाले
किसीने मेरा झुका सर नहीं देखा
दोस्तों ने मेरी किताब खरीद तो ली पर
खोलके किसीने भी अंदर नहीं देखा
उनसे वाहवाही की उम्मीद क्यों ‘मिसरा’
जिन्होंने इक ढंग का शायर नहीं देखा