Minakhi Misra

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  • हमशिकवा

    तुम कलकत्ता के नाती हो
    हम बरहमपुर के पोते हैं
    पर रिश्ते में एक दूजे के हम
    हमशिकवा ही होते हैं

    सोचा था नज़्में घोलेंगे
    लोगों की आँखें खोलेंगे
    शिकवों की तलवारों से
    दुनिया पे धाबा बोलेंगे
    क्यों लिखने के टाइम पे फ़िर
    हम चादर ओढ़ के सोते हैं
    तुम कलकत्ता के नाती हो
    हम बरहमपुर के पोते हैं

    कभी बिरियानी की स्वाद में
    या अंग्रेज़ी अनुवाद में
    फस जाने का बहाना कर
    हम कह देते हैं “बाद में”
    यूँ फुरसत की किनारों पे
    क्यों गंगा में हाथ धोते हैं
    तुम कलकत्ता के नाती हो
    हम बरहमपुर के पोते हैं

    अब वक़्त है कागज़ फाड़ने का
    कुछ शेर नया दहाड़ने का
    “मसरूफ़” नाम के तिनके को
    दाढ़ी से अपने झाड़ने का
    ए वारिस रस्म-ए-नज़्मों की
    चल नया मिसरा फिरोते हैं
    तुम कलकत्ता के नाती हो
    हम बरहमपुर के पोते हैं

    June 21, 2021
    Hindi, Poems
  • मिन्नु का टॉफ़ी

    मिन्नु का टॉफ़ी मिन्नु सा नहीं था ।
    जहां जहां मिन्नु बल्लून सा फूला था,
    वहां वहां टॉफ़ी डोर सा पतला था।
    जहां मिन्नु का ग़ुरूर उसे हवा में उडाता था
    वहां टॉफ़ी का डोर उसे ज़मीन पे ले आता था।

    मिन्नु से पूछता था, “ऊपर पहुँचके करोगे क्या?
    बादलों में तुम्हारी कोई अहमियत तोह है नहीं।
    अंदर महसूस होते peer pressure से फ़ट जाओगे।
    यहीं रुको, किसी के चेहरे पे smile तोह ले आओगे।”

    वैसे उड़ने का शोक टॉफ़ी को भी था,
    पर कटे पतंग के अनाथ मांझे सा नहीं।
    बेहेन की राखी से छूटे भाई की हँसी पर उड़ना था उसे।
    किसी पेड़ पे बंधी दुआओं पर उड़ना था उसे।
    कहता था
    “उड़ना ही है तोह ख़ुशी फैला के उड़ो।
    चरखे की सूती सा धुल चला के उड़ो।
    खुद में गरम हवा भरने का क्या मोल है?
    बाती के धुएं पे रौशनी जला के उड़ो।”

    दो साल होगये हैं अब तोह।
    खींचा तानी का खेल अभी भी चालु है।
    मिन्नु अब भी घर बादलों में ढूंढ रहा है
    और टॉफ़ी किसी दरगाह पे बिछी चद्दर में।

    June 20, 2021
    Hindi, Poems
  • ए मालिक तेरा बंदा हूँ नहीं मैं

    ए मालिक तेरा बंदा हूँ नहीं मैं
    पर तेरे कुछ पल और मांगने आया हूँ
    जिसे तू ने बनाया मुझे बनाने के लिए
    उसके कुछ कल और मांगने आया हूँ

    आदत थी उन्हें एक ही चप्पल की
    टूटती नहीं तो नया नहीं लेते थे
    स्कूल के जूतों संग रात को मुझे
    चप्पल भी पॉलिश करने कहते थे
    तब ज़ुल्म और आज नसीब मानकर
    एक दो चप्पल और मांगने आया हूँ
    जिसे तू ने बनाया मुझे बनाने के लिए
    उसके कुछ कल और मांगने आया हूँ

    न्यूज़ के बाद रेडियो पर रोज़
    नुसरत संग सुर लगाते थे
    मैं शिकायत करता तो मुझे
    हस के रुई ढूंढने भगाते थे
    तब ज़ुल्म और आज नसीब मानकर
    बेसुरे वो ग़ज़ल और मांगने आया हूँ
    जिसे तू ने बनाया मुझे बनाने के लिए
    उसके कुछ कल और मांगने आया हूँ

    ए मालिक तेरा बंदा हूँ नहीं मैं
    पर तेरे कुछ पल और मांगने आया हूँ

    June 19, 2021
    Hindi, Poems
  • अपना कर ले

    अपने टाइम की तलाश छोड़
    हर लम्हें को तू अपना कर ले
    रातों की नींद छोड़
    सच्चाई ये सपना कर ले
    जलाके प्यास भूख
    राख को ही चखना कर ले
    भुलाके आदि तू
    अनंत को ही अपना कर ले

    अपना कर ले
    अपना कर ले
    अपना कर ले
    अपना कर ले

    —

    खूं में ही है शायरी तो
    स्याह तेरी भूरी क्यों है
    नाम में है मिसरा तो
    नज़्म ये अधूरी क्यों है
    आवाज़ दिल से है तो
    लब से दिल की दूरी क्यों है
    जीना है खाबों मे
    हक़ीक़त से मंज़ूरी क्यों है

    बोल

    हैं हौसले मुरादों में
    इरादों को तू अपना कर ले
    जलाके भूख प्यास
    राख को तू चखना कर ले
    भुलाके आदि तू
    अनंत को ही सपना कर ले
    छुडाके वक़्त से
    हर लम्हें को तू अपना कर ले

    अपना कर ले
    अपना कर ले
    अपना कर ले
    अपना कर ले

    —

    ट्रैफिक में तू क़ैद है
    चल अपनी गाड़ी मोड़ ले
    उस रियरव्यू के शीशे को
    खुद अपने हाथों तोड़ ले
    छत को दे गिरा
    खुद को धूप से तू जोड़ ले
    आगे गिरती बारिशों को
    शर्ट से निचोड़ ले

    चल

    इस हाईवे से दूर
    टूटे रास्ते को तू अपना कर ले
    ढाबों के नान छोड़
    खाख को ही चखना कर ले
    भुलाके आदि तू
    अनंत को ही सपना कर ले
    छुडाके वक़्त से
    हर लम्हें को तू अपना कर ले

    अपना कर ले
    अपना कर ले
    अपना कर ले
    अपना कर ले
    —

    June 18, 2021
    Hindi, Poems
  • सुलह

    बिना सुलह किये हम सोते नहीं
    ग़म में रात रात भर रोते नहीं
    हर सुबह नयी शुरुवात होती है
    झगड़ों में एक दूजे को खोते नहीं

    June 17, 2021
    Hindi, Poems
  • मेरे खयाल-ए-ख़ुदकुशी

    कदम कदम पे साया सा
    क्यों आता मेरी ओर है यूँ
    गले गले के दरमियां
    क्यों बांधा कोई डोर है यूँ

    तू रहता क्यों फ़िराक़ में कि
    ज़मीं ही मेरी खींचेगा
    ज़्यादा ग़म हो सीने में तो
    ज़मीं लहु से सींचेगा

    ले मान लिया तेरी बात को
    कि पूरा ही बेकार हूँ मैं
    पर इस वहम में न रहियो
    कि तेरा ही शिकार हूँ मैं

    तू चल ले चालें जितनीं भी
    दे मात मुझे न पाएगा
    शह शह के चक्कर में
    खुद व्यूह में फस जाएगा

    बहुत हुआ नादानी ये
    कब तक इसे हम झेलेंगे
    कब तक हम एक दूजे के संग
    लुक्का छुप्पी खेलेंगे

    वुजूद तेरा मुझ बिन नहीं
    समझ इतना तो पाया हूँ
    उतारने तेरे मौत की लत मैं
    परोस के जीना लाया हूँ

    साथ में मरना तय ही है जब
    थोड़ा साथ में जी भी ले
    आंसू तूने खूब पिलाये
    अब रूह अफज़ा भी पी ही ले

    June 16, 2021
    Hindi, Poems
  • नई नई है

    रुकते हुए लब भटकती निगाहें
    दिल में उल्फ़त नई नई है
    तकल्लुफ़ भी है बेतकल्लुफ़ी भी
    आज मोहब्बत नई नई है

    बत्तियां हैं आगे सितारें हैं ऊपर
    पर है चमक सिर्फ़ आंखों में
    छूने की कोशिश छुप जाने का मन
    बेचैन ये हसरत नई नई है

    कच्ची है कैरी और नमकीन है लब
    क्या खूब तलब है इन ज़ुबानों पे
    भुलाके ये लोग भुलाके वो शर्म
    हमारी ये हरक़त नई नई है

    इसकी अंगूठी उसका अंगूठा
    चल क्या रहा है दरमियां इनके
    पता भी है कहना भी होगा
    इज़हार की ज़रूरत नई नई है

    ग़ज़ल भी लिखने जिसे वक़्त न था
    क्या हुआ उसका बताओ ‘मिसरा’
    दूर भी आये इंतिज़ार भी किया
    लगता है फ़ुर्सत नई नई है

    June 15, 2021
    Hindi, Poems
  • रखना

    जितना मन करे उतने तुम सवाल रखना
    मन में छुपाके कोई न मलाल रखना

    मुझे तमीज़ नहीं है मदद मांगने की
    मेरी मायूसी में मेरा खयाल रखना

    मैं अक्सर रोने लग जाता हूं बेवजह
    दिल में सबर रखना हाथ में रुमाल रखना

    रखो न रखो और कुछ यादों में मगर
    आंखों की हसी क़दमों के उछाल रखना

    तुम बेहतर ही उभरे हो हर दफ़ा ‘मिसरा’
    अपने माज़ी को ही अपना मिसाल रखना

    June 14, 2021
    Hindi, Poems
  • तुम जो आए

    जब भी बुलाता था उसे मिलने कहीं
    वो फसी होती थी मुश्किल में कहीं

    फिर बोलती थी जाने दो कोई बात नहीं
    वैसे क्या ही कर लेते हम मिलके कहीं

    मैं अकेला ही चलता रहा इस आस में
    मिलेगी कोई यूं ही भटकते कहीं

    टकराया जब तुमसे इतने सालों बाद
    काफ़ी तेज़ पुकार आयी अंदर से कहीं

    मां के साथ वक़्त बिताने से डरने लगा हूं
    मेरी मुस्कान में तुझे न देख ले कहीं

    तुम चीखते चिल्लाते ही रहना ओ ‘मिसरा’
    फिर दूर न हो जाऊं मैं सुखन से कहीं

    June 13, 2021
    Hindi, Poems
  • मोहब्बत की तरह

    सज़ा दी जिस दिल ने अदालत की तरह
    माफ़ी दी उसी ने इबादत की तरह

    खोल के मोहब्बत के सारे दरवाज़े वो
    टिक गई ज़हन में इमारत की तरह

    रूहानी ज़रूरत बन गई है वो अब
    ज़िद्दी सी जिस्मानी ज़रूरत की तरह

    मेरे बिखरे टुकड़ों को जोड़ रही है वो
    किंत्सुगी सी किसी मरम्मत की तरह

    काफ़ी मसरूफ़ रहने लगी है आजकल वो
    मोहलत देती है मुहुर्रत की तरह

    उस अफ़सोस को भी बहा आया मैं ‘मिसरा’
    संभाला था जिसको अमानत की तरह

    June 12, 2021
    Hindi, Poems
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