रुकते हुए लब भटकती निगाहें
दिल में उल्फ़त नई नई है
तकल्लुफ़ भी है बेतकल्लुफ़ी भी
आज मोहब्बत नई नई है
बत्तियां हैं आगे सितारें हैं ऊपर
पर है चमक सिर्फ़ आंखों में
छूने की कोशिश छुप जाने का मन
बेचैन ये हसरत नई नई है
कच्ची है कैरी और नमकीन है लब
क्या खूब तलब है इन ज़ुबानों पे
भुलाके ये लोग भुलाके वो शर्म
हमारी ये हरक़त नई नई है
इसकी अंगूठी उसका अंगूठा
चल क्या रहा है दरमियां इनके
पता भी है कहना भी होगा
इज़हार की ज़रूरत नई नई है
ग़ज़ल भी लिखने जिसे वक़्त न था
क्या हुआ उसका बताओ ‘मिसरा’
दूर भी आये इंतिज़ार भी किया
लगता है फ़ुर्सत नई नई है