सौ जवाब दे कर जितना सीखा है
एक सवाल पूछ कर उतना सीखा है
क्या मिला है सभी को धोखा देकर
ख़ुद ही को धोखा देना सीखा है
सारी दुनिया से दूर आकर अब
ख़ुद ही में ख़ुदा ढूंढना सीखा है
तोलता था जिसमें मैं हर किसी को
उस तराज़ू को तोड़ना सीखा है
बदी में खूब हैं नैकि के मौके
शब में भी सुबह देखना सीखा है
अपनी ख़ामियों को जान कर मैंने
ज़िम्मेदारीयां लेना सीखा है
लाख सायों की है ये रात अंधेरी
हर साये में निखारना सीखा है
रूह के जलने का अब ख़ौफ़ नहीं
मैंने कोयलों पे भागना सीखा है
कल ओर कल के साईकल से निकल कर
आज को आज ही में जीना सीखा है
न देकर कम न लेकर ज़्यादा हूँ
ये सच सिखाके सीखना सीखा है
तेरी ज़ुबां जानता नहीं हूँ पर
उस ज़ुबां में भी हसना सीखा है
मैं तुम हूँ, हाँ, एक और तुम हूँ मिसरा
तुम्हें गले लगाना सीखा है