तेरे लम्हों से जुड़कर दिलचस्प हुआ कहते हैं
तुमसे मिलकर मैं नया शक़्स हुआ कहते है
मैं तेरी ओर इशारे से दिखाता हूँ घर
वो तो नादान हैं रिहाइश को पता कहते हैं
तुम मेरे पास भी न हो कर हो करीब मेरे
क्या यही राब्ता है जिसको वफ़ा कहते हैं
तेरे ही ख़ाब सजाने में गुज़रते हैं पल
इन्तेज़ारी के सिवा किसको सज़ा कहते हैं
मैं ने तो कोई भी मिसरा दोहराया नहीं
क्यों तेरे नाम की ग़ज़ल को नशा कहते हैं