छपवा दो इस्तेहार

हाँ छपवा दो फ़ोटो इस्तेहार में कोई
बैठा है ना मेरे इंतिज़ार में कोई

अंगूठा स्वाइप करने का है ज़माना
क्यों अंगूठी ख़रीदे बेकार में कोई

मैं खो चुका हूँ किताबखानों में कब से
ढूंढ रहा है मुझे पब-ओ-बार में कोई

कहां नूर जहां में लिपटा शहनशाह था
कहां बेनूर दफ़्न हूँ इक दीवार में कोई

सीख गया हूँ डूबते को लोहा बेचना
रख लो मुझे अपने कारोबार में कोई

हर मिसरा धुंआ धुंआ सा उड़ रहा है
जैसे लिखा हो ग़ज़ल बुख़ार में कोई

Create a website or blog at WordPress.com

%d bloggers like this: