किताब जल जाए फ़लसफ़ा नहीं जलता
निखरता है आग में सोना नहीं जलता
मोहल्ले से सबको निकाल कर कहते हैं
अब मज़हब के नाम मोहल्ला नहीं जलता
सियासत वालों कभी अमर ज्योत देखो
इंसां जलते है इरादा नहीं जलता
जलते होंगे अमीरों से दूसरे अमीर
हीरों के ताज से ये कासा नहीं जलता
बड़ी आग लगाती है शायरी ‘मिसरा’
बस कम्बख़त घर का चूल्हा नहीं जलता
Leave a reply to Doesn’t burn – Minakhi Misra Cancel reply