हर खयाल मेरा नया सा लगे
शेर के पंख लिए उड़ता सा लगे
एक मिसरा भी गर कट जाए तो शेर
कोई जटायु गिरा सा लगे
ज़ुबां पे छोड़े नीम की कड़वाई
पर दिल को शेर ग़वारा सा लगे
कोई पढ़ ले तो हलका सा लम्स हो
कोई सुन ले तमाचा सा लगे
शायरी का वो बाज़ीगर बनूं
सामने जीता भी हारा सा लगे
इतना बदनाम हो जाऊं मैं ‘मिसरा’
रो भी दूं तो तमाशा सा लगे