कहीं शेर-ओ-ख़याल के दरमियान मैं हूँ
या जो ये लिख रहा है वो इंसान मैं हूँ
कईं आवाज़ें गूंज रहीं हैं ज़हन में
क्या उन सभी आवाज़ों की पहचान मैं हूँ
डॉक्टर कहती है छे शख़सियत हैं मुझमें
हैं गर तो क्यों जान कर हैरान मैं हूँ
एक अलग सी महफ़िल जम गयी है मन में
माज़ी कईं हैं बस एक मेहमान मैं हूँ
हर आवाज़ को अलग शेर लिखना है यहां
शायद जो इन सबसे है परेशान मैं हूँ
सुना है इंसानों में ये नहीं है आम
क्या आदमखाल में फसा शैतान मैं हूँ
इस मक़्ते में तेरा तख़ल्लुस है ‘मिसरा’
उस तख़ल्लुस के पीछे का अनजान मैं हूँ