हसा भी दो हसाना बेकार है
यूँ मेरा मन बहलाना बेकार है
काफ़ी कम नमक की आदत है मुझे
समंदर घूमा ले जाना बेकार है
खिड़की मत खोलो फ़र्श ठंडा ही ठीक है
यूँ धूप की कालीन बिछाना बेकार है
काबूस बन चुके हैं ये सारे सपने
एक नया सपना दिखाना बेकार है
बेहतर है शाईरी में मशरूफ़ रहूँ
शाईरी से मशहूर होना बेकार है
ज़र-ए-गुल से एलर्जी है ‘मिसरा’
तुम्हारा गुलज़ार हो जाना बेकार है