ख़ाहिश पूरी कर देता पर वक़्त नहीं है
उतार के क़मर देता पर वक़्त नहीं है
जानता हूँ इस मसरूफ़ियत से शिक़वे हैं
शिक़वों को नज़र देता पर वक़्त नहीं है
तुमने साड़ी में भेजी है तस्वीर अपनी
उसमें सिंदूर भर देता पर वक़्त नहीं है
मुझे पड़ी होती रोज़गारी की अगर
खोल अपना दफ़्तर देता पर वक़्त नहीं है
मैं सुबह से बैठा हूँ कागज़ पे ‘मिसरा’
तुझे दोपहर देता पर वक़्त नहीं है
Comments
One response to “वक़्त नहीं है”
[…] Translated from my Hindi poem, वक़्त नहीं है […]
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