आये थे तो रुक के मिल लेते
कुछ रिश्तें दोबारा सिल लेते
सपने चौखट पे तोड़ गए पर
वापस तोहफ़ा-ए-दिल लेते
जो देख कईं शब गुज़ारे थे
फिर वो नज़ारा-ए-तिल लेते
ये बाग़ तुमने ही सजाया था
रुकते तो तुम भी खिल लेते
आये थे तो रुक के मिल लेते
कुछ रिश्तें दोबारा सिल लेते
सपने चौखट पे तोड़ गए पर
वापस तोहफ़ा-ए-दिल लेते
जो देख कईं शब गुज़ारे थे
फिर वो नज़ारा-ए-तिल लेते
ये बाग़ तुमने ही सजाया था
रुकते तो तुम भी खिल लेते