मसीहा

क्या पानी को भी मै बनाने वाला मसीहा था
या प्यासों को पानी पिलाने वाला मसीहा था

कौन जानता है मो’अजिज़ें उसने किये कि नहीं
सभी के ख़िदमत में खो जाने वाला मसीहा था

इस ख़ुदा के बंदे में ख़ुदा पाना मुश्किल नहीं
हर बंदे में ख़ुदा को पाने वाला मसीहा था

काफ़ियों ने कोशिशें की तोड़ने उसका हौसला
टूटे को भी हौसला दिलाने वाला मसीहा था

चढ़ा तो दिया बेगुनाह ही उसे सलीब पर
सबके गुनाह खुद पे चढ़ाने वाला मसीहा था

आंखों से लहु बहाने वाले बहुत थे वहां
हर घाव से आंसू बहाने वाला मसीहा था

हर सदमे पे तूने उसको गालियां दी है मिसरा
हर सदमे को सबक बनाने वाला मसीहा था

Create a website or blog at WordPress.com

%d bloggers like this: