गौर करूं तो इनाम तुम्हारा लगता है
ये राहत-ए-इलहाम तुम्हारा लगता है
बस मैं जानता हूँ मेरे बिखरने का राज़
ज़माने को तो काम तुम्हारा लगता है
है नहीं किसी और को शिकायत मुझसे
लगता है तो इल्ज़ाम तुम्हारा लगता है
भाग जाते हैं शराबज़ादे भी यहां से
गलती से भी गर जाम तुम्हारा लगता है
कब से ही ऐसा होता आ रहा है ना
जुर्म मैं करता हूँ नाम तुम्हारा लगता है
रख लो इस घर को कभी ज़रूरत होगी
तुम्हें जहां तमाम तुम्हारा लगता है
ढूंढ ही लूँगा कोई और हमसफ़र मिसरा
तन्हाई पर अंजाम तुम्हारा लगता है
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One response to “तुम्हारा लगता है”
[…] Translated from my Hindi poem, “तुम्हारा लगता है” […]
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