अपने कलाम में तुम आबाद न हो सके
तंखादार रह गए आज़ाद न हो सके
बस बोलते रहे कि दुनिया घूमोगे
तुम बरहमपुर के भी सिंदबाद न हो सके
बंदूक भी हो सर पे तुम क्या ही कहोगे
जां बचाने भी शहरेज़ाद न हो सके
याद होंगे तुम्हें अपने अश’आर सारे पर
अफ़सोस है किसी और को याद न हो सके
क्यों करते हो कंजूसियां दादबक्षी में
खुद तो कभी क़ाबिल-ए-दाद न हो सके
अब क्या ही मिला ख़ुदको बुलाकर मिसरा
शायर भी बने और बर्बाद न हो सके