साथ में इक पल भी हमने बिताया नहीं
घुटलियां गिनते रहे आम खाया नहीं
तू आयी नहीं खिड़की पे कई दिन से
और इल्ज़ाम है कि मैंने बुलाया नहीं
ये फूल है मेरे इंतिज़ारी की गवाह
ऐसा शेर नहीं जो इसे सुनाया नहीं
ताज़ा है फ़िर भी इतने दिनों से गुलाब
मैं रोता रहा तो ये मुरझाया नहीं
इतनी ही अहमियत थी तेरी ‘मिसरा’
तू गिरता रहा उसने उठाया नहीं