किसी और का जंग कोई और फसता है लड़ाई में
हर बरस बादल ही रोता है धूप की सफ़ाई में
जिसने मुद्दतों से दो लफ़्ज़ भी न बोले थे मुझसे
उस बाप का भी सीना फूटा है मेरी बिदाई में
कौन याद करता है उन शहीदों को दिवाली के बाद
वो पटाखे जो फ़ना हो गयीं नूर-अफ़ज़ाई में
बेहतर है तेरा मशवरा तेरे पास ही रख ‘मिसरा’
तू वो मरीज़ है जो दवा ढूंढता है सियाही में