ब्लॉक

ख़यालों से कह दूं निकल आएं
हो सके तो बनके ग़ज़ल आएं

बोए थे अल्फ़ाज़ इस उम्मीद में कि
अश्कों के मौसम में फसल आएं

और कितना इंतेज़ार करें ऐसे
ऑफिस चलें, कपड़े बदल आएं

आएं हैं तो सफ़हा भर देते हैं
चाहे लफ़्ज़ों के हमशकल आएं

आज हम ने कुछ भी लिखा है ‘मिसरा’
पढ़ने वालों से कह दूं कल आएं


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Comments

One response to “ब्लॉक”

  1. […] Translated from my Hindi poem, ब्लॉक […]

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