Minakhi Misra

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  • बचके रहियो

    कांटे पे खिली गुल से बचके रहियो
    शक में छिपे बिल्कुल से बचके रहियो

    तेरा गाना चुराने आती है हर दिन
    इस लुटेरी बुलबुल से बचके रहियो

    हसीना के राखी से दूर भागने वाले
    हसीना के काकुल से बचके रहियो

    आख़िर में जलाके जाएगी महबूबा
    इस मोहब्बत के पुल से बचके रहियो

    तेरे सब गुनाह ख़ुदा बक्श देगा ‘मिसरा’
    मौका-ए-तक़ाबुल से बचके रहियो

    May 27, 2021
    Hindi, Poems
  • भुला कर

    हो चुका हूँ अपनी नादानी भुला कर
    अंधा ख़ुदाई दरख़शानी भुला कर

    रेशम के कपड़ों में सजता हूँ हर दिन
    करोड़ों कीड़ों की क़ुर्बानी भुला कर

    आती है क्यों मेरे मकान पे वो बुलबुल
    हर शाम अपनी मकां आसमानी भुला कर

    मुश्किल था जहां से रिहा करना उसको
    उसकी वो निग़ाहें नूरानी भुला कर

    भूल जाता हूँ अकसर बात करने उससे जो
    बात करती रही हर शैतानी भुला कर

    दूर रहता रहा उसके हर खत से मैं भी
    वो लिखावट उसकी मस्तानी भुला कर

    इस पल में हूँ शुकर गुज़ार उनका ‘मिसरा’
    जिया हूँ जिनकी मेहेरबानी भुला कर

    May 26, 2021
    Hindi, Poems
  • दास्तान-ए-महबूब-ओ-महबूबा

    पर्दे में आया था चाँद बादल के पीछे
    इंतिज़ार में था महबूब पीपल के पीछे

    शीशे में साफ़ दिख रहा था महबूबा को
    जो बे-ख़्वाबी छिपी थी काजल के पीछे

    थर्राने से कैसे रोकता दिल को महबूब
    उसने खंजर पहनी थी मलमल के पीछे

    खिड़की पे टंगा खाली पिंजरा जानता था
    क्या राज़ था सुर्खी के हलाहल के पीछे

    खिड़की दरवाजों से निकले कई साये
    जब बारिश गिरने लगी जंगल के पीछे

    मुड़ मुड़ के देखती रही वफ़ादार कनीज़
    कुछ क़ातिल थे छनकते पायल के पीछे

    क़ातिल भी जान गए वो बेकार पड़े थे
    महबूब के कपड़ों में इक पागल के पीछे

    बस कुछ पहाड़ी लक्कड़बाज़ों ने देखा
    दरिया में थे इंसान संदल के पीछे

    न तो सुर्खी लगी किसी के होठों पे
    न खून फैला किसी के कम्बल के पीछे

    जब रात भर मिले नहीं महबूब-महबूबा
    कनीज़-पागल को बांधा मक़तल के पीछे

    क्या खबर थी शोर मचाने वालों को कौन
    बुर्के में थी कौन सूजी शकल के पीछे

    पूछना कभी पीपल के कौओं से ‘मिसरा’
    किनकी चीखें थी सारी हलचल के पीछे

    May 25, 2021
    Hindi, Poems
  • वक़्त नहीं है

    ख़ाहिश पूरी कर देता पर वक़्त नहीं है
    उतार के क़मर देता पर वक़्त नहीं है

    जानता हूँ इस मसरूफ़ियत से शिक़वे हैं
    शिक़वों को नज़र देता पर वक़्त नहीं है

    तुमने साड़ी में भेजी है तस्वीर अपनी
    उसमें सिंदूर भर देता पर वक़्त नहीं है

    मुझे पड़ी होती रोज़गारी की अगर
    खोल अपना दफ़्तर देता पर वक़्त नहीं है

    मैं सुबह से बैठा हूँ कागज़ पे ‘मिसरा’
    तुझे दोपहर देता पर वक़्त नहीं है

    May 24, 2021
    Hindi, Poems
  • दिवाली है

    घर घर जलते पटाखों की दिवाली है
    डरे डरे परिंदों की दिवाली है

    धुएं ने तारे ढक लिए तो क्या हुआ
    आज हवाई लालटेनों की दिवाली है

    खिड़कियों से कपड़े उतर गयें हैं आज
    मदहोश भटके रॉकेटों की दिवाली है

    पड़ोसी जल जाए यूँ सजे हुए हैं
    इमारती दुल्हनों की दिवाली है

    रात भर चलेंगे हाईवे की अंधेरों में
    आज जिस्मानी बाज़ारों की दिवाली है

    कल से फिर जिन्हें कोई नहीं पूछेगा
    आज उन लावारिस बच्चों की दिवाली है

    कुछ तक़लीफ़ें हैं पर ये भी सच है कि आज
    मिसरा खानदान में अपनों की दिवाली है

    May 23, 2021
    Hindi, Poems
  • हार चुका हूँ

    शर्तें क़रीब हज़ार हार चुका हूँ
    मैं ख़ुद से इतनी बार हार चुका हूँ

    शुरू में ईंट रक्खी थी दाव पे
    अब तो पूरी दीवार हार चुका हूँ

    महीना गुज़र गया था जब तक
    जाना कि उसका प्यार हार चुका हूँ

    अपने गुरूर की क्या ही बात करूं
    नाक बचाके रोज़गार हार चुका हूँ

    नाम के चक्कर में मुड़ के न देखा
    पीछे कितने बहार हार चुका हूँ

    ख़ुद में इतना मसरूफ रहा ‘मिसरा’
    अपना परवरदिगार हार चुका हूँ

    May 22, 2021
    Hindi, Poems
  • बीच में आ गयी

    बनना मुझे शायर था आशिक़ी बीच में आ गयी
    फ़ना इश्क़ में होना था ज़िन्दगी बीच में आ गयी

    शिकस्तगी सी मेरी ये ज़िन्दगानी थी मगर
    पल भर जीत के जीने की तिश्नगी बीच में आ गयी

    घाट घाट ढूंढा मगर इक बूंद फ़तह की मिली नहीं
    तलाश जारी रखता पर मुफ़लिसी बीच में आ गयी

    रात का दिन और दिन की रात करके पैसे जोड़ लिए कुछ
    जम चुका था नौकरी में मायूसी बीच में आ गयी

    हर सुबह हर शाम बस ख़ुदकुशी के खयाल आये
    मौत लेने चला ही था अजनबी बीच में आ गयी

    जीना फिर सिखाया उसने जीना साथ में चाहती थी
    मैं नहीं तय्यार था और खुदगर्ज़ी बीच में आ गयी

    दिल के रेज़े बटोर कर वो चल दी अपने ही रास्ते
    सोचा नाम पुकारूं पर खामोशी बीच में आ गयी

    खामोश भी मैं तन्हा भी न जाने क्या क्या कर जाता
    शुकर मनाओ ‘मिसरा’ शाइरी बीच में आ गयी

    May 21, 2021
    Hindi, Poems
  • मैं न रहूँ

    नौ से पांच ये है नहीं
    पर उससे बेहतर भी नहीं
    सर झुका के मैं सर बेचूं
    ऐसी फ़ितरत ही नहीं

    काम है ये मक़सद नही
    कब तक इसे कर पाऊंगा
    सिक्का सिक्का जोड़ के भी
    फुक्कड ही रह जाऊंगा

    वक़्त भी मुझ पर रुके
    ऐसा खुद टीक जाना है
    मैं न रहूँ तो भी रहूँ
    ऐसा कुछ लिख जाना है

    —

    अंदर जो फ़नकार उससे
    मिला नज़र कब पाऊंगा
    तोहफ़ा ये ख़ुदा का मुझपे
    तौहीं थोड़ी कर पाऊंगा

    आवाज़ को अवाम के
    रूह से जा मिलाना है
    ज़हनों में वो जम जाये
    ऐसा वज़न दिलाना है

    वक़्त को फुरसत न हो
    यूँ उसे बेहलाऊँगा
    मैं न रहूँ तो भी रहूँ
    ऐसा कुछ लिख जाऊंगा

    May 20, 2021
    Hindi, Poems
  • डर के आने का डर

    डर के आने के डर से घबराता रहा
    शोख़ पत्ते सा टहनी पे थर्राता रहा

    जान न पाया कैसे निकलना है बाहर
    कबूतर सा शीशे से टकराता रहा

    हर माह मेहमान सा आता रहा डर
    हर माह मेज़बान सा ठहराता रहा

    चालीसा सिखाया था दादी ने कभी
    मैं मिट्ठू सा उसे दोहराता रहा

    डर कूदता रहा मुझपे झरने सा ‘मिसरा’
    और डूबते भंवर सा मैं चकराता रहा

    May 19, 2021
    Hindi, Poems
  • गुस्सा

    जितनी देर में ये पल जायेगा
    मेरे गुस्से से सब जल जायेगा

    हमारे रिश्ते की मीनारों का
    वो फ़ौलाद भी गल जायेगा

    टूटते तारे से मांगी वो दुआ
    उस ही तारे सा ढल जायेगा

    आंसुओं से आज बचा लोगे पर
    उनमें डूब हमारा कल जायेगा

    May 18, 2021
    Hindi, Poems
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