अपना कर ले

अपने टाइम की तलाश छोड़
हर लम्हें को तू अपना कर ले
रातों की नींद छोड़
सच्चाई ये सपना कर ले
जलाके प्यास भूख
राख को ही चखना कर ले
भुलाके आदि तू
अनंत को ही अपना कर ले

अपना कर ले
अपना कर ले
अपना कर ले
अपना कर ले

खूं में ही है शायरी तो
स्याह तेरी भूरी क्यों है
नाम में है मिसरा तो
नज़्म ये अधूरी क्यों है
आवाज़ दिल से है तो
लब से दिल की दूरी क्यों है
जीना है खाबों मे
हक़ीक़त से मंज़ूरी क्यों है

बोल

हैं हौसले मुरादों में
इरादों को तू अपना कर ले
जलाके भूख प्यास
राख को तू चखना कर ले
भुलाके आदि तू
अनंत को ही सपना कर ले
छुडाके वक़्त से
हर लम्हें को तू अपना कर ले

अपना कर ले
अपना कर ले
अपना कर ले
अपना कर ले

ट्रैफिक में तू क़ैद है
चल अपनी गाड़ी मोड़ ले
उस रियरव्यू के शीशे को
खुद अपने हाथों तोड़ ले
छत को दे गिरा
खुद को धूप से तू जोड़ ले
आगे गिरती बारिशों को
शर्ट से निचोड़ ले

चल

इस हाईवे से दूर
टूटे रास्ते को तू अपना कर ले
ढाबों के नान छोड़
खाख को ही चखना कर ले
भुलाके आदि तू
अनंत को ही सपना कर ले
छुडाके वक़्त से
हर लम्हें को तू अपना कर ले

अपना कर ले
अपना कर ले
अपना कर ले
अपना कर ले


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Comments

One response to “अपना कर ले”

  1. […] Translated from my Hindi poem, अपना कर ले […]

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