तुम जो आए

जब भी बुलाता था उसे मिलने कहीं
वो फसी होती थी मुश्किल में कहीं

फिर बोलती थी जाने दो कोई बात नहीं
वैसे क्या ही कर लेते हम मिलके कहीं

मैं अकेला ही चलता रहा इस आस में
मिलेगी कोई यूं ही भटकते कहीं

टकराया जब तुमसे इतने सालों बाद
काफ़ी तेज़ पुकार आयी अंदर से कहीं

मां के साथ वक़्त बिताने से डरने लगा हूं
मेरी मुस्कान में तुझे न देख ले कहीं

तुम चीखते चिल्लाते ही रहना ओ ‘मिसरा’
फिर दूर न हो जाऊं मैं सुखन से कहीं


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Comments

One response to “तुम जो आए”

  1. […] Translated from my Hindi poem, तुम जो आए […]

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