कौन सुनेगा

और की फरियादें कौन सुनेगा
एक सी हैं हालतें कौन सुनेगा

रोतें हैं गुलाब जब बाग़बान के हाथ
कट जाते हैं कांटें कौन सुनेगा

बजे चाहे हर दिन वो धुन जिसपे
झूमतीं हैं बरसातें कौन सुनेगा

नींद में हैं जो जुर्म में नहीं शामिल
चीख रहीं है रातें कौन सुनेगा

मैंने किसी की सुनी नहीं जब
आज मेरी ये बातें कौन सुनेगा

अफ़सोस सिर्फ़ करम बोलता है ‘मिसरा’
साफ़ होंगीं इरादें कौन सुनेगा

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