यतिमस्तां

देख वज़ीर की कैसी नमक-हरामी है
मलिका से करता शीरीं-कलामी है

ताज छोड़के कबका फ़क़ीर बन गया बादशाह
शायद जानता था कि ताज बस ग़ुलामी है

सूख कर पत्ते जब गिरे उसके कासे में
जज़ामी जान गया पेड़ भी जज़ामी है

सिपाही को डर है सर्दी में जंग होगी
रात को भागता आया एक पयामी है

सुबह उफ़क़ पे किसका परचम दिखेगा
ये सवाल निजी ही नहीं अवामी है

ख़ुदा शैतान दोनों की बोली लगी है
कल तो पूरे मुल्क़ के कल की नीलामी है


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