नई घास उगी है अब यलगारों के बाद
गले मिलें हैं दुश्मन नुकसानों के बाद
यकीं था फिरौन को वो बेमौत रहेगा
महफूज़ इस मक़बरे में सदियों के बाद
अपने नाम का धागा बांधा पेड़ पे माँ ने
बेटियों के नाम के हज़ार धागों के बाद
हैरान था काफ़िर मिलने ख़ुदा जब आया
कि लायक था वो इतने गुनाहों के बाद
लूटता ही रहा इस उम्मीद में डाकू
कि मिलेगी नींद सारे ख़ज़ानों के बाद
झूमता ही रहा ख़ुदा के नाम पे दरविश
नादान ज़माने के सब ज़िल्लतों के बाद
लिखते लिखते इतना याद रखना ‘मिसरा’
काफ़ी और लिखना है इन अश’आरों के बाद