भुला कर

हो चुका हूँ अपनी नादानी भुला कर
अंधा ख़ुदाई दरख़शानी भुला कर

रेशम के कपड़ों में सजता हूँ हर दिन
करोड़ों कीड़ों की क़ुर्बानी भुला कर

आती है क्यों मेरे मकान पे वो बुलबुल
हर शाम अपनी मकां आसमानी भुला कर

मुश्किल था जहां से रिहा करना उसको
उसकी वो निग़ाहें नूरानी भुला कर

भूल जाता हूँ अकसर बात करने उससे जो
बात करती रही हर शैतानी भुला कर

दूर रहता रहा उसके हर खत से मैं भी
वो लिखावट उसकी मस्तानी भुला कर

इस पल में हूँ शुकर गुज़ार उनका ‘मिसरा’
जिया हूँ जिनकी मेहेरबानी भुला कर


Discover more from Minakhi Misra

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Comments

One response to “भुला कर”

  1. […] Translated from my Hindi poem, भुला कर […]

    Like