बदलाव

है नहीं कि अमीर ही अमीर बनते हैं
छे कदम में प्यादे भी वज़ीर बनते हैं

सही को सही जानना फ़िर भी है आसान
गलत को गलत जानकर ज़मीर बनते हैं

माशूक़ को मुख़ालिफ़ बना देता है शक
भरोसे से मनहूस भी बशीर बनते हैं

पैदाइश भी नहीं परवरिश भी नहीं
बस करम से जुलाहे कबीर बनते हैं

बेख़ौफ़ ही लिखता चल तू मिसरे पे मिसरा
शायरी है सुधरे भी शरीर बनते हैं


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