घर नहीं दे पाए इमारत क्या दोगे
ये कासा भर दो बाकी दौलत क्या दोगे
छोड़ गए इस मासूम को गलती बुला कर
अब इसकी खामोशी की कीमत क्या दोगे
नाम जानता है सारा मोहल्ला तुम्हारा
अब इससे भी ज़्यादा शौहरत क्या दोगे
बंद कर लेते हो कान मुझे गरजता देख
बादल हूँ रोने की इजाज़त क्या दोगे
मोहब्बत तो तुमसे कभी दी ही नहीं गयी
अब देर हो गयी है अब इज़्ज़त क्या दोगे
सकते हो तो दो इसे नाम अपना ‘मिसरा’
पहचान से बड़ी अब विरासत क्या दोगे
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One response to “क्या दोगे”
[…] Translated from my Hindi poem, “क्या दोगे” […]
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