जमती नहीं

ज़माने से दूर हुआ कि किसी से जमती नहीं
तन्हाई में जाना कि मेरी मुझ ही से जमती नहीं

अपने को आप ही में एक जज़ीरा बना दिया मगर
अब इन लहरों की नटखट दिल्लगी से जमती नहीं

आदत थी किताबों की गहराईयों में डूबने की
अब उनसे बनी टीले की ऊंचाई से जमती नहीं

अच्छा हुआ पुराने कागज़ ग़ुम हो गए ‘मिसरा’
हिंदी पे दिल आ गया है अंग्रेज़ी से जमती नहीं


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Comments

One response to “जमती नहीं”

  1. […] Translated from my Hindi poem, जमती नहीं […]

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