ज़्यादा है

माना वस्ल की राहत में राहत ज़्यादा है
अनार भी स्वाद है पर मेहनत ज़्यादा है

होंगे और भी दुःख मोहब्बत के सिवा
वही ढूँढ लें जिन्हें फुरसत ज़्यादा है

होगा इश्क़ भी हिमालय के पानी सा पाक
पहले मुफ़्त मिलता था अब कीमत ज़्यादा है

ज़िन्दगी भी बस एक उम्र-क़ैद की सज़ा है
जीने की ख्वाहिश कम है मोहलत ज़्यादा है

तक़दीर भी क्या क्या मज़े लेता है मुझसे
ये उसकी शरारत कम फितरत ज़्यादा है

तुझसे खूब शिक़वे हैं पर ये नहीं ‘मिसरा’
कि तेरे मिसरों में हक़ीक़त ज़्यादा है


Discover more from Minakhi Misra

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Comments

So, what did you think about this?