ए मालिक तेरा बंदा हूँ नहीं मैं
पर तेरे कुछ पल और मांगने आया हूँ
जिसे तू ने बनाया मुझे बनाने के लिए
उसके कुछ कल और मांगने आया हूँ
आदत थी उन्हें एक ही चप्पल की
टूटती नहीं तो नया नहीं लेते थे
स्कूल के जूतों संग रात को मुझे
चप्पल भी पॉलिश करने कहते थे
तब ज़ुल्म और आज नसीब मानकर
एक दो चप्पल और मांगने आया हूँ
जिसे तू ने बनाया मुझे बनाने के लिए
उसके कुछ कल और मांगने आया हूँ
न्यूज़ के बाद रेडियो पर रोज़
नुसरत संग सुर लगाते थे
मैं शिकायत करता तो मुझे
हस के रुई ढूंढने भगाते थे
तब ज़ुल्म और आज नसीब मानकर
बेसुरे वो ग़ज़ल और मांगने आया हूँ
जिसे तू ने बनाया मुझे बनाने के लिए
उसके कुछ कल और मांगने आया हूँ
ए मालिक तेरा बंदा हूँ नहीं मैं
पर तेरे कुछ पल और मांगने आया हूँ
Comments
One response to “ए मालिक तेरा बंदा हूँ नहीं मैं”
[…] Translated from my Hindi Poem, ए मालिक […]
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