मुसलमान चुनूँ या हिंदू चुनूँ
ख़ुदा का ही है जो बाज़ू चुनूँ
फिर उछला है आज किस्मत का सिक्का
फिर न पता कौनसा पहलू चुनूँ
सनम का इत्र या माँ के परांठे
चुनूँ भी तो कौनसी ख़ुशबू चुनूँ
कौनसा हुस्न टपक रहा है उसका
कि पैमाना छोड़ के चुल्लू चुनूँ
मुझे कौन ही रू-ब-रू चुनेगी
क्या किसी को मैं रू-ब-रू चुनूँ
ज़हर की तलब न बुझी शेर से
सांप चुनूँ ‘मिसरा’ या बिच्छू चुनूँ
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One response to “चुनूँ”
[…] Translated from my Hindi poem, चुनूँ […]
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