याद में क़ुर्बानियों के सिवा कुछ नहीं
है आंख में पानियों के सिवा कुछ नहीं
सबके दिलों में झांकता रहा वो दरविश
मिला वीरानियों के सिवा कुछ नहीं
फ़ुज़ूल बसेरा ढूंढ रहे हो इस दिल में
यहां कहानियों के सिवा कुछ नहीं
सदके में क्या ही देता जब मेरे पास था
इन परेशानियों के सिवा कुछ नहीं
मेरी तबाही की अस्तियों में मिला
मेरी नादानियों के सिवा कुछ नहीं
मेरी इक्का राजा की जोड़ी हार गयी
उसके हाथ रानियों के सिवा कुछ नहीं
क्यों गुरूर करूं इन तालियों पे ‘मिसरा’
ये मेहरबानियों के सिवा कुछ नहीं
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One response to “कुछ नहीं”
[…] Translated from my Hindi Poem “कुछ नहीं” […]
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