मैं बैठा हूँ अपना बसेरा जलाए
इस ठंडी रोशनी में अंधेरा जलाए
बुझा आया हूँ जिसके लिए थे फेरे
आज उसी आग में कस्म-ए-फेरा जलाए
किसको रहनुमा मानके चलूँ यहां
खड़ा है मशाल हर लूटेरा जलाए
कोई मारुति था जो बंधा था यहां
निकल गया पुलिस का घेरा जलाए
हाँ होगी दिवाली पूरे देश में ‘मिसरा’
ख़बरदार कोई दिया मेरा जलाए
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