मेज़ पे बैठा कवी, लिखने चला वो इक ग़ज़ल
मन से चुन कर द्वेष सारी रख दी उसने इक बगल
फिर भी ज़ुर्रत क्या हुई, कागज़ जो उससे रुठ गया
छोड़ उसको मेज़ पर, कागज़ वहाँ से उठ गया
मेज़
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