क्लोज़र

आज काफ़ी दिनों बाद
कुछ यादों के सफ़्हे पलटने लगा हूँ।
चिपकने लगीं हैं कागज़ एक दूसरे से।
एक दूसरे की गर्माहट को चादर बनाए ओढ़ रहीं हैं।
उनको अलग करने का ज़ायका अभी भी जुबां पर लगा है।
कुछ कुछ तुमबिन तन्हाई सा स्वाद है।

वो सारे अलफ़ाज़ जो तुम्हारे लिए बुने थे
क्रिसमस की स्वेटर जैसे भुला दिए गायें हैं।
रात रात भर जब तकिया बनाएं सो जाता था उनपे
उन रातों की लार अभी भी सूखे दाग से पड़ें हैं।

बस कुछ बदला है तो ये है कि
अब इस डायरी में लिखना छोड़ दिया है।
अब किसी और के आँगन में यादें पीसता हूँ।


Discover more from Minakhi Misra

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Comments

One response to “क्लोज़र”

  1. […] Translated from my Hindi poem, क्लोज़र […]

    Like