विरासत

पच्चीस का होने वाला हूँ।
बालों में अब चांदी आने लगी है।
लोग कहते हैं पानी खराब होगा।
या पढाई का बोझ कुछ ज़्यादा ढो लिया होगा।

कौन देख रहा है कैसे रोज़ रात
थोड़ी धड़कती उम्र स्याही में घोल कर
मिसरों में पोत रहा हूँ?

एक रोज़ जब सूखे उपलों सा जिस्म
वक़्त के चूल्हे पे राख बन जायेगा।
यही चाँद अलफ़ाज़ रह जाएँगी इधर।
मेरे छोटी सी ज़िन्दगी का स्वाद दे जाएँगी सबको।

आखिर चमचम पे थोड़ी चांदी तो बनती है।


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Comments

One response to “विरासत”

  1. […] Translated from my Hindi poem, विरासत […]

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