ठीक भी हूं, ठाक भी हूं
कहीं अचल अबाक भी हूं
कहीं अंदर अमृत झरती है
उसके झर से पाक भी हूं
पतझड़ ने पत्ते छीने हैं
अड़ा सक्त मैं शाख भी हूं
तपना बुझना जिंदगी है
ज्वाला मैं हूं राख भी हूं
ठीक भी हूं, ठाक भी हूं
कहीं अचल अबाक भी हूं
कहीं अंदर अमृत झरती है
उसके झर से पाक भी हूं
पतझड़ ने पत्ते छीने हैं
अड़ा सक्त मैं शाख भी हूं
तपना बुझना जिंदगी है
ज्वाला मैं हूं राख भी हूं
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Comments
One response to “ठीक हो?”
[…] Translated from my Hindi poem, ठीक हो? […]
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