किस रिश्ते से आये हो?
जिस रोज़ से मेरी धड़कनें सुनने तुम्हें
Stethoscope चलना पड़ा,
उस रोज़ से तुम्हारी डॉक्टरी पे से
भरोसा उठ गया था मुझे।
गले का साँप लगता है वह चीज़-
हर बार जब छाती छूंता है,
कुछ ज़हरीला छोड़ जाता है तुम्हारे कानों में।
मेरे दिल की डुग-डुग को
न जाने कौनसा डंका बना देता है
कि जितना पास बुलाता हूँ,
तुम उतनी ही दूर चले जाते हो।
क्यों छूं रहे हो माथे को? जाओ!
नहीं करना “आ”!
इस शीशे में पारे को क़ैद कर
नाप तो लोगे मेरे बदन की गर्मी,
पर उस शीशे का क्या करोगे
जिसमे तुम्हारा चेहरा देख रोज़ जलता हूँ?
Dramatic बन रहा हूँ?
नहीं नहीं जी- शायर हूँ बस।
चार दिन के भूखे को देख
cyproheptadine नहीं लिख देता।
बैठता हूँ उसके साथ।
क्या ग़म सता रही है पूछता हूँ।
अब तक तो पता लग जाना चाहिए था।
कोई बिमारी नहीं है
जो बदन को क़ाबू किये बैठी है।
कुछ है तो ये है कि अंदर के इंसान पे अभी
सफ़ेद कोट का कफ़न नहीं चढ़ाया।
Potential की बात मत करो, price high था।
जता रहे हो जी?
“For old time’s sake”?
क्या याद किये आये हो?
कहीं उन लम्हों को तो नहीं
जो यादों के पेड़ पर अब पक चुके हैं।
बचपने में ही तोड़ लाते तो सही रेहता।
थोडा कच्चा स्वाद ज़रूर आता ज़बान पे,
पर नमक मिर्च लगाते हाथ नहीं झिझकते।
आज वह पके फ़ल न तो तोड़े जाते हैं
न उन्हें ऐसे ही सड़ते देखा जाता है।
डर लगता है उन्हें छीलने में –
न जाने कौनसी खाँसी जकड लेगी।
तुम्हारे दवाओं की कड़वाहट बैठ गयी है –
अब मीठी सच्चाई भी तो नहीं उतरती गले से।
Comments
One response to “For old time’s sake”
[…] Translated from my Hindi poem, also titled For old time’s sake […]
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