बेटा बड़ा हो गया अब आराम होगा
कहां मालूम था यूं सोचना हराम होगा
उसके हर कल पे मेरा हर आज क़ुर्बान था
क्या पता मेरे कल का क्या अंजाम होगा
अपने पास भी बुला कर रख ले अगर तो
बस फासले होंगीं और क़ुर्बत का नाम होगा
महीने गुज़र गए यही सुन के कि
पापा इस महीने भी काफी काम होगा
कंधा देने वो खुद आये कि न आये
उसका एक आंसू भी मेरा इनाम होगा
नाम तक ठुकरा दिए जो सोचे थे मैंने
पोती गुलनाज़ होगी पोता गुलफ़ाम होगा