नए साल में सब मोहब्बत कर रहे हैं
और हम हैं कि शिकायत कर रहे हैं
वक़्त तो आ गया है कि वक़्त बदले
पर हम फिर वही शरारत कर रहें हैं
‘अठरा में सुना है कि सब है माफ़
हम भी इंतेज़ार-ए-इनायत कर रहे हैं
लोग बनाने लगे हैं सपने हकीक़त
हम हकीक़त ही क़यामत कर रहें हैं
इजाज़त थी पढ़ने को एक ही मिसरा
हम फ़िर तौहीन-ए-इजाज़त कर रहें हैं
नए साल में सब मोहब्बत कर रहे हैं
और हम हैं कि शिकायत कर रहे हैं